Wife Property Rights – भारत में शादी के बाद महिलाओं को क्या संपत्ति में हिस्सा मिलेगा, ये सवाल हर दूसरी शादीशुदा महिला के मन में कभी न कभी जरूर आता है। खासकर जब बात पति की संपत्ति की हो – चाहे वो पैतृक हो या खुद की कमाई से खरीदी गई हो। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक अहम फैसला देकर कई चीजों को साफ कर दिया है। इस लेख में हम आपको बेहद आसान और रोज़मर्रा की भाषा में बताएंगे कि पत्नी का हक आखिर होता क्या है और कौन सी परिस्थितियां उसे संपत्ति में अधिकार दिलाती हैं।
क्या होती है खानदानी संपत्ति और इसमें पत्नी का अधिकार
सबसे पहले समझते हैं खानदानी या पैतृक संपत्ति क्या होती है। ये वो संपत्ति होती है जो पति को उसके पूर्वजों से विरासत में मिली हो – जैसे कि जमीन, मकान या कोई पुरानी प्रॉपर्टी जो पीढ़ियों से परिवार में चली आ रही हो। अब सवाल उठता है कि क्या पत्नी को इस पर कोई हक है? सीधा जवाब है – नहीं, लेकिन कुछ शर्तों के साथ हां भी हो सकता है। अगर ये साफ है कि पति को इस संपत्ति में हिस्सा मिला है और आगे जाकर कोई विवाद या तलाक की नौबत आती है, तो पत्नी इस संपत्ति में रहने का हक पा सकती है। खासकर अगर उसके पास रहने के लिए कोई और ठिकाना नहीं है, तो कोर्ट उस घर में पत्नी को रहने की अनुमति दे सकता है।
पति की कमाई से खरीदी गई प्रॉपर्टी में क्या पत्नी का हक होता है?
अब आते हैं उस प्रॉपर्टी पर जो पति ने खुद की कमाई से खरीदी हो। अगर ये प्रॉपर्टी सिर्फ पति के नाम है और पत्नी ने इसमें कोई आर्थिक योगदान नहीं दिया है, तो तलाक के बाद पत्नी इस पर दावा नहीं कर सकती। लेकिन अगर पत्नी ने इस प्रॉपर्टी की खरीद में पैसा लगाया है – चाहे वो थोड़ा ही क्यों न हो – और उसके पास सबूत भी हैं जैसे कि बैंक स्टेटमेंट, चेक की रसीद या ऑनलाइन ट्रांजैक्शन का रिकॉर्ड, तो वह अपना हक मांग सकती है। कोर्ट तब यह देखता है कि पत्नी का योगदान कितना था और वो कितना हिस्सा पाने की हकदार है।
संयुक्त प्रॉपर्टी में दोनों का बराबर हक होता है
जब पति-पत्नी मिलकर किसी प्रॉपर्टी को खरीदते हैं और रजिस्ट्री दोनों के नाम पर होती है, तो इसे संयुक्त संपत्ति कहा जाता है। इसमें दोनों का बराबर हक होता है। मतलब चाहे रिश्ता बना रहे या तलाक हो जाए, पत्नी इस प्रॉपर्टी में अपना हिस्सा ले सकती है। भले ही पैसा किसी एक ने ज्यादा दिया हो, लेकिन दस्तावेज़ों में दोनों के नाम होने पर कोर्ट दोनों को बराबर का हक देता है। इसलिए अगर आप घर खरीद रहे हैं और चाहते हैं कि भविष्य में कोई कानूनी झंझट न हो, तो दस्तावेज़ पक्के रखें और रजिस्ट्री दोनों के नाम पर कराएं।
तलाक की स्थिति में पत्नी के क्या अधिकार होते हैं
जब तलाक का मामला कोर्ट में चल रहा होता है, तो तब तक पति-पत्नी का रिश्ता कानूनी तौर पर बना रहता है। ऐसे में पत्नी को पति की संपत्ति में कुछ अधिकार मिल सकते हैं। अगर तलाक के दौरान पति दूसरी शादी करता है या किसी और महिला से रिश्ता बनाता है, तो पहली पत्नी और उसके बच्चों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार मिलता है। कोर्ट इस बात का पूरा ध्यान रखता है कि पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय न हो और उन्हें उनके अधिकार से वंचित न किया जाए। कई बार कोर्ट पत्नी को उसी घर में रहने की अनुमति भी दे देता है ताकि उसे बेदखल न किया जा सके।
अगर पति की वसीयत नहीं बनी है तो क्या होगा?
मान लीजिए पति की मौत हो गई और उसने कोई वसीयत नहीं छोड़ी है, तो उसकी संपत्ति कानून के अनुसार उसकी पत्नी और बच्चों में बराबरी से बांटी जाएगी – चाहे वो संपत्ति विरासत में मिली हो या खुद की कमाई से खरीदी गई हो। लेकिन अगर वसीयत है और उसमें सारा हिस्सा किसी और को दे दिया गया है, तो पत्नी उस वसीयत को कोर्ट में चुनौती दे सकती है। अगर उसे लगता है कि उसके साथ धोखा हुआ है या उसके हक को नजरअंदाज किया गया है, तो कोर्ट इस पर दोबारा विचार कर सकता है।
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कौन-कौन से दस्तावेज़ संभालकर रखने चाहिए?
अगर पत्नी को भविष्य में किसी भी तरह का संपत्ति से जुड़ा दावा करना है, तो उसे कुछ जरूरी दस्तावेज़ संभालकर रखने चाहिए। जैसे कि बैंक स्टेटमेंट, पेमेंट की रसीदें, ऑनलाइन ट्रांजैक्शन का रिकॉर्ड या कोई और दस्तावेज़ जिससे यह साबित हो सके कि उसने प्रॉपर्टी में पैसा लगाया है। ये कागजात कोर्ट में उसका पक्ष मजबूत करते हैं।
कानूनी सलाह लेना क्यों जरूरी है?
हर मामला अलग होता है – किसी की शादी को कई साल हो चुके हैं, किसी का तलाक हो रहा है, किसी को विरासत में संपत्ति मिली है और किसी को नहीं। ऐसे में सही सलाह तभी मिल सकती है जब आप किसी अच्छे वकील से मिलें। बहुत सी महिलाएं अपने अधिकार को लेकर जानकारी नहीं रखतीं या चुप रहती हैं, जिससे उन्हें उनका हक नहीं मिल पाता। लेकिन अगर सही समय पर सही कदम उठाए जाएं, तो न्याय पाना संभव है।
डिस्क्लेमर
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यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह नहीं है। किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पहले किसी योग्य वकील से व्यक्तिगत रूप से परामर्श करना जरूरी है, क्योंकि हर मामला अलग होता है और राज्य अनुसार कानूनों में भिन्नता हो सकती है।